ऐसा ज्ञान जिसकी प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुखों का नाश हो जाए तथा परब्रह्म अर्थात् स्वयं के स्वरूप की अनुभूति हो जाए, ऐसा ज्ञान सिर्फ गुरु की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। गुरु कोई शरीर नहीं यह एक तत्व है जो पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान है। गुरु और शिष्य का संबंध शरीर से परे आत्मिक होता है। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु से दीक्षा लेने, साधना को मजबूत करने और अपने अंदर गुरु को अनुभव करने का दिन है। गुरु को याद कर लेने मात्र से ही हमारे विकार बिलकुल वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे प्रकाश के होने पर अंधकार दूर हो जाता है। मन के अंधकार को मिटाने वाला कोई और नहीं बल्कि गुरु ही होता है। गुरु ही है जो जीने का तरीका सिखाता है और हमें मुक्ति की राह दिखाता है।
एक कहावत है "हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर" मतलब हरि के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है लेकिन गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण नहीं मिल पाती। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है। भगवान विष्णु ने भी जब कृष्ण अवतार लिया तो गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की। भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान प्राप्त किया। सामान्य मनुष्य से लेकर देव अवतार तक सभी को गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु पूर्णिमा का त्यौहार गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा, गुरु पूजा और कृतज्ञता को दर्शाता है। पौराणिक कथा है कि इस दिन परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति के रूप में ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों को वेदों का ज्ञान प्रदान किया था और इसी दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी का जन्मदिन भी होता है। उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
यूं तो हर महीने पूर्णिमा आती है लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हम गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इस दिन को गुरु दिवस की तरह हम सालों से मनाते आ रहे हैं। गुरु वह होता है जो अपने शिष्य के भीतर असीम संभावनाओं के कपाट खोल देता है जिससे व्यक्ति अपनी सीमाओं को पार कर अनंत ब्रह्मांड का अंग बन जाता है। गुरु सभी के जीवन में होना जरूरी है जिनके जीवन में गुरु नहीं है उनको श्रद्धा भाव से अपने गुरु की खोज करनी चाहिए। गुरु की प्राप्ति पर नतमस्तक होकर अपने अहंकार को उनके चरणों में रख देना चाहिए। जब हम गुरु के प्रति समर्पित हो जाते हैं तो गुरु तत्व, गुरु कृपा, गुरु ऊर्जा और गुरु वाणी, शिष्य के भीतर बहना शुरू हो जाती हैं। जब भी गुरु के सामने जाएं तो अपना धन-कुटुंब, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा इन सब को भुलाकर जाएं केवल श्रद्धा भाव से गुरु के प्रति नतमस्तक हों, नहीं तो आप गुरु कृपा से चूक जाते हैं।
आध्यात्मिक विकास के लिए खान-पान
यदि हम अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन जीना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें अपनी इंद्रियों को वश में रखना होगा और अपने आहार को इस प्रकार से नियमित करना होगा जिससे हमें पूर्ण मात्रा में शक्ति तो मिले ही परंतु उसके साथ-साथ निरोगी काया भी मिले। सुख और शांति से भरा जीवन जीने के लिए हमें अपने आहार में सुधार लाना बेहद जरूरी है क्योंकि जैसा अन्न वैसा मन, जैसा मन वैसे विचार, जैसा विचार वैसे आचार और जैसा आचार वैसा स्वास्थ्य। हम सभी जानते हैं कि हम ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भोजन करते हैं लेकिन यह बड़ी हैरानी की बात है कि दुनिया में सभी प्रजातियों में एक मनुष्य ही है जो प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाला कच्चा खाद्य बिल्कुल भी पसंद नहीं करता। हम उस कच्चे खाने को अपनी इंद्रियों की संतुष्टता के लिए अलग-अलग तरह से खाना पकाने की तकनीकों को अपनाकर स्वादिष्ट बनाने में लगे रहते हैं जिसके कारण हमारे आहार की पौष्टिकता पूरी तरह से नष्ट हो जाती। अंत में ऐसा चटपटा स्वादिष्ट भोजन हमारे लिए रोग, दुख और चिंता उत्पन्न करने वाला कारक बनता है।
हमारे भारतीय शास्त्रों में आहार को तीन प्रकारों में बांटा गया है। सात्विक राजसिक और तामसिक। ऋषि मुनियों के अनुसार सात्विक भोजन करने से मनुष्य के अंदर आध्यात्मिक भावों की बढ़ोतरी होती है और उनका मन सद्गुणों की और झुकता है। इसके विपरीत यदि राजसिक और तामसिक भोजन किया जाए तो आत्मा पर अंधकार का पर्दा पड़ने लगता है और मन कुमार्ग पर चलने लगता है। इस तरह के भोजन से शुरुआत में खुशी भले ही मिलती हो पर अंत में यह आपको नुकसान के अलावा और कुछ नहीं देता। वेदों में भी कहा गया है कि अगर आहार शुद्ध होता है तो ईश्वर में स्मृति दृढ़ होती हैं और स्मृति प्राप्त हो जाने से हृदय की अविद्या जनित सभी गांठे खुल जाती हैं। कड़वे, खट्टे, नमकीन, तीखे, गर्म इस तरह के सभी खाद्य पदार्थ सिर्फ शरीर को पीड़ा पहुंचाते हैं और उसे रोगों का घर बना देते हैं।
अध्यात्मिक विकास के लिए हमारा खान-पान न्याय युक्त उपायों से उपार्जित, किसी भी प्राणी को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचाकर प्राप्त किया हुआ एवं सात्विक गुणों से युक्त होना चाहिए। इसका मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि अब हम आग पर पके हुए भोजन को पूरी तरह से त्याग कर सिर्फ फल, मूल और पत्तों का ही इस्तेमाल करना शुरू का दें। ऐसा करना हमारे लिए आसान भी नहीं है परंतु अपने अच्छे स्वास्थ्य और रोगों से दूरी बनाए रखने के लिए हम इतना तो अवश्य कर सकते हैं कि पके हुए भोजन की मात्रा में कमी करके कच्चे फल, पत्ते, सब्जियों आदि का इस्तेमाल ज्यादा करें ताकि हमारा मन कुमार्ग पर न जाए और हमारा आध्यात्मिक विकास हो।
गुरु पूर्णिमा का पर्व अध्यात्मिक साधकों के लिए अपने आध्यात्मिक यात्रा पर विचार करने और अपने आध्यात्मिक अभ्यास के लिए खुद को फिर से समर्पित करने का एक अवसर है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु का आशीर्वाद विशेष रूप से शक्तिशाली होता है और गुरु शिष्य को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का आशीर्वाद देते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने गुरु के लिए उपवास भी रखते हैं। यह उपवास सूर्योदय से सूर्यास्त तक रखा जाता है। इसमें सुबह उठकर और स्नान करके सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं। सूर्योदय से पहले फल, मेवे और दूध जैसा साधारण भोजन खा सकते हैं फिर पूरे दिन भोजन और पानी से परहेज करते हैं। सूर्यास्त के बाद फल, मेवे और दूध जैसे उत्पादों से ही अपना उपवास तोड़ते हैं।
Namhya कश्मीरी कहवा से करें उपवास की शुरुआत
यदि आप भी अपने गुरु को समर्पित, गुरु पुर्णिमा के उपवास को रखते हैं तो आप इस उपवास के दिन की शुरुआत Namhya के एक कप कश्मीरी कहवा से कर सकते हैं। कश्मीरी कहवा Namhya का एक हर्बल प्रोडक्ट है जो कई तरह की समस्याओं जैसे हाई कोलेस्ट्रॉल, कमजोर इम्यूनिटी, कमजोर पाचन शक्ति आदि में तो मदद करता ही है, साथ ही इसका सेवन आप उपवास के दौरान पूरे दिन तरोताज़ा रहने के लिए भी कर सकते हैं। कश्मीरी कहवा के मुख्य घटक हैं; दालचीनी, केसर, इलायची और गुलाब की पंखुड़ियां और यही घटक आपको उपवास के दौरान तरोताज़ा रखने में मदद करते हैं।
Namhya के बादाम ड्रिंक पाउडर का करें सेवन
आषाढ़ मास के दौरान आने वाले गुरु पूर्णिमा के उपवास के समय अधिक गर्मी होती है और इस भीषण गर्मी में उपवास रखना कोई आसान काम नहीं है। ऐसे में चाहिए कुछ ऐसा जो आपको पूरे दिन ताज़गी दे। इसके लिए आप इस्तेमाल कर सकते हैं Namhya का बादाम ड्रिंक पाउडर। इसमें है कसा हुआ बादाम, पिसे हुए खरबूजे के बीज, पिस्ता, खसखस, सौंफ के बीज, काली मिर्च और कई तरह के सुगंधित मसाले। इन सभी सामग्रियों का आकर्षक संयोजन एक बेहतर स्वाद प्रदान करता है जिसके सेवन से आप ताज़गी से भर उठेंगे। आप इस बादाम ड्रिंक पाउडर को बनाने के लिए एक कप दूध लें। उसमें 2 बड़े चम्मच बादाम ड्रिंक पाउडर मिलाएं। यदि जरूरत हो तो थोड़ी बर्फ या गुड़ मिला सकते हैं। अब इसे मिक्सी या शेकर की मदद से शेक करें। तैयार है आपका ताज़ा बादाम मिल्क जो आपको उपवास के दौरान भरपूर एनर्जी देगा।