मधुमेह का आयुर्वेदिक उपचार क्या है? जानें इसके तरीके और फायदे

मधुमेह जिसे डायबिटीज भी कहते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका सामना लगभग हर कोई कर रहा है। अपना शुगर लेवल कंट्रोल रखने के लिए लोग कई दवाओं का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आयुर्वेद के जरिए भी इस बीमारी पर काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जो तब होती है जब हमारे शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है और हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाना बंद कर देता है।

 

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, इस बीमारी से निजात पाना मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि मधुमेह के इलाज के लिए आयुर्वेद एक बढ़िया उपचार है। आज इस लेख में भी हम मधुमेह के आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में पढ़ेंगे।

 

मधुमेह

 

मधुमेह की बीमारी सीधे तौर पर खराब जीवनशैली का नतीजा है। हालांकि कई मामलों में अगर माता-पिता या परिवार में किसी को भी डायबिटीज हो तो बच्चों को भी यह हो सकती है। मधुमेह उपापचय संबंधी परेशानी है। ब्लड में लंबे समय तक शुगर की मात्रा बड़ी रहने से यह समस्या हो सकती है। यह एक साइलेंट बीमारी है जिसकी वजह से कई दूसरी बीमारियां भी आप को अपना शिकार बना लेती हैं। डायबिटीज में पैंक्रियास पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाते और अगर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनता भी है तो कोशिकाएं उसको रिस्पांस नहीं कर पाती।

 

इस बीमारी का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है जो ज्यादा मीठा, फास्ट फूड, ज्यादा कैलोरी वाला भोजन खाते हैं और बहुत कम शारीरिक श्रम करते हैं। आजकल तनाव भी इस बीमारी का एक मुख्य कारण बन गया है। कुछ दवाएं भी ऐसी होती हैं जो इस बीमारी को जन्म देती हैं जैसे स्टेरॉयड। कई बार गर्भवती महिलाओं को भी गर्भावस्था के समय अस्थाई मधुमेह हो सकता है परंतु यह मधुमेह डिलीवरी के बाद नॉर्मल हो जाता है।

 

डायबिटीज कितने प्रकार की होती है

 

डायबिटीज दो प्रकार की होती है:

    • टाइप 1 डायबिटीज - इस प्रकार की डायबिटीज में इम्यूनिटी सिस्टम पैंक्रियास की बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देता है जो इंसुलिन बनाती है। ऐसे में इंसुलिन की कमी हो जाती है और ब्लड शुगर बढ़ जाता है। कई बार इस तरह की डायबिटीज का कारण अनुवांशिक हो जाता है। इसके लक्षण बहुत तेजी से सामने आते हैं।

    मधुमेह की शिकायत

     

    • टाइप 2 डायबिटीज - इस प्रकार के डायबिटीज में इंसुलिन के प्रभाव में रुकावट आती है। इस डायबिटीज का मुख्य कारण मोटापा, खराब जीवनशैली और अनुवांशिक भी हो सकता है। इसके लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं।

     

    मधुमेह के लक्षण

    कई बार मधुमेह के लक्षण पहचान में नहीं आते क्योंकि रोगी को यह सभी लक्षण सामान्य ही लगते हैं। आइए जानते हैं ऐसे लक्षणों के बारे में जो मधुमेह का संकेत देते हैं:

    1. बार-बार पेशाब आना
    2. शरीर में कमजोरी महसूस होना
    3. वजन कम होना
    4. भूख अधिक लगना
    5. प्यास अधिक लगना
    6. घाव देर से भरना
    7. पिंडलियों में दर्द होना
    8. जननांगों में खुजली होना
    9. हाथों-पैरों में जलन और सुई जैसी चुभन होना
    10. आंखों की रोशनी का कमजोर होना

     

    उपरोक्त लक्षणों में से ज्यादातर अगर मिलते हैं तो डायबिटीज की तुरंत जांच कराएं और डॉक्टर से सलाह लें।

     

    आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मधुमेह

    आयुर्वेद के अनुसार शारीरिक, मानसिक और रूपात्मक लक्षणों के आधार पर व्यक्ति की प्रकृति तय की जाती है। हर व्यक्ति में एक दोष जैसे कि वात, पित्त, कफ मुख्य होता है। इसी के आधार पर उसकी प्रकृति तय की जाती है। कफ दोष और मेद धातु के स्तर में वृद्धि से मधुमेह की बीमारी पैदा होती है। यह बीमारी वात और पित्त प्रधान प्रकृति वाले लोगों की तुलना में मुख्य रूप से कफ प्रधान प्रवृत्ति वाले लोगों में ज्यादा देखी जाती हैं।

     

    जिस दोष के कारण डायबिटीज हुआ है उसके आधार पर मधुमेह को वात प्रमेह, पित्त प्रमेह और कफ प्रमेह तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है। कफ प्रमेह साध्य है मतलब इसका इलाज हो सकता है, पित्त प्रमेह को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन वात प्रमेह असाध्य मतलब लाइलाज है।

     

    मधुमेह का आयुर्वेदिक उपचार

    मधुमेह के आयुर्वेदिक उपचार में आयुर्वेदिक चिकित्सक डायबिटीज मेलिटस के लिए उद्वर्तन (पाउडर मालिश), धान्य अम्ल धारा (सिर पर गर्म औषधीय तरल डालने की विधि), सर्वांग अभ्यंग (पूरे शरीर पर तेल मालिश), स्वेदन (पसीना लाने की विधि), सर्वांग क्षीरधारा (तेल स्नान), वमन कर्म ( उल्टी लाने की विधि), और विरेचन कर्म (दस्त के जरिए शुद्धीकरण) की सलाह देते हैं।

     

    उद्वर्तन

    1. इस विधि में खास औषधीय पाउडर जिसमें प्रभावित व्यक्ति के सारे दोषों को संतुलित करने वाली जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है, उससे मालिश की जाती है।
    2. यह मालिश 45 से 60 मिनट तक चलती है। इसके बाद मरीज आधा घंटा आराम करके नहा सकता है।
    3. यह विधि कफ दोष और मरीज के शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी को कम करके मधुमेह का उपचार करती है।

     

    धान्य अम्ल धारा

    1.धान्य अम्ल में धान्य (अनाज) और अम्ल (सिरका) से गुनगुना औषधीय तरल तैयार किया जाता है। यह तरल कफ और वात दोष को संतुलित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    2. इस विधि में गर्म औषधीय तरल को प्रभावित हिस्से या पूरे शरीर पर डाला जाता है। धारा चिकित्सा दो तरह की होती है - परिषेक (शरीर के किसी खास हिस्से पर औषधीय तेल डालना) और अवगाहन (औषधीय तरल से भरे टब में बैठना)।

     

    सर्वांग अभ्यंग और स्वेदन

    1. सर्वांग अभ्यंग तेल को पूरे शरीर पर डालने और मालिश करने की एक प्रक्रिया है। यह शरीर की लसीका प्रणाली को उत्तेजित करती हैं जो कि कोशिकाओं की पोषण की कमी और शरीर से जहरीले तत्व निकालने का काम करती है।
    2. तेल मालिश के बाद स्वेदन के जरिए शरीर के विषैले पदार्थों को प्रभावी तरीके से पूरी तरह से बाहर करने का काम किया जाता है।
    3. स्वेदन से शरीर की सभी नाड़ियां खुल जाती हैं और विषैले तत्व रक्त से निकलकर जठरांत्र मार्ग में आ जाते हैं। यहां से विषैले पदार्थों को आसानी से शरीर द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
    4. स्वेदन चार प्रकार का होता है - पहला तप, जिसमें एक गर्म कपड़े से शरीर के प्रभावित अंग पर सिकाई की जाती हैं। दूसरा उपनाह, जिसमें चिकित्सकीय जड़ी-बूटी के मिश्रण से तैयार लेप शरीर पर लगाया जाता है। तीसरा ऊष्मा, जिसमें संबंधित दोष के निवारण में उपयोगी जड़ी बूटियों को उबालकर उसकी गर्म भाप दी जाती है। चौथा धारा, जिसमें गरम तेल को शरीर के ऊपर डाला जाता है।

     

    सर्वांग क्षीरधारा

    1. शिरोधारा एक ऐसा आयुर्वेदिक उपचार है जिसमें दूध, तेल जैसे विभिन्न तरल पदार्थों और जड़ी बूटियों का काढ़ा बनाकर लयबद्ध तरीके से सिर के ऊपर से डाला जाता है।
    2. सर्वांग क्षीरधारा को तेल स्नान भी कहते हैं। इसमें उचित तेल को सिर और पूरे शरीर पर डाला जाता है।

     

    वमन कर्म

    1. यह भी इस थेरेपी का एक हिस्सा है जो पेट को साफ कर नाड़ियों और छाती से उल्टी के जरिए विषैले पदार्थ और बलगम को बाहर निकालती है।
    2. इसमें मरीज को नमक का पानी, मुलेठी और वच दिया जाता है। इस चिकित्सा के प्रभाव को बढ़ाने के लिए पीपली, सेंधा नमक, आंवला, नीम, मदनफल जैसी जड़ी बूटियों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
    3. मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल कफ संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।
    4. इस प्रक्रिया के बाद हाथ और पैरों को अच्छी तरह से धोया जाता है और जड़ी-बूटियों वाले धुएं को सांस के द्वारा अंदर लिया जाता है। इसके बाद पर्याप्त नींद लेने की सलाह दी जाती है।

     

    विरेचन कर्म

    1. इस थेरेपी में विरेचन कर्म भी मुख्य है और इसका प्रभाव काफी असरदार देखा जाता है।
    2. इसमें अलग-अलग तरह के रेचक जैसे की सेन्ना, रूबर्ब या एलोवेरा देकर शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।
    3. मधुमेह के अलावा विरेचन कर्म का इस्तेमाल पेट के ट्यूमर, बवासीर, अल्सर, गठिया आदि जैसी बीमारियों में भी किया जाता है।
    4. विरेचन कर्म के बाद चावल और दाल का सूप दिया जाता है।

     

    मधुमेह में कारगर आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि

     

    गुड़मार

    1. गुड़मार की जड़ों और पत्तों का इस्तेमाल डायबिटीज मेलिटस के इलाज में किया जाता है एक शोध में यह सामने आया है कि यह जड़ी बूटी खट्टे-मीठे घोल में से मीठास निकाल देती है और मीठा खाने की इच्छा को भी कम करती है। गुड़मार से पैंक्रियास की कार्य क्षमता में भी सुधार होता है।
    2. गुड़मार डायबिटीज के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से है। इसकी जो पत्तियां है वह हृदय को उत्तेजित करती हैं इसलिए हृदय संबंधित रोगों से ग्रस्त लोगों को यह जड़ी बूटी देते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

    आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मधुमेह

     

    गिलोय

    1. पाचन तंत्र से संबंधित विकारों के इलाज में गिलोय की जड़ और तने का इस्तेमाल किया जाता है।
    2. डायबिटीज मेलिटस के उपचार में भी यह कारगर है क्योंकि यह कड़वे टॉनिक की तरह काम करती है और इसमें शर्करा को कम करने की क्षमता भी है।

     

    आंवला

    1. यह डायबिटीज जैसी बीमारी के इलाज में बहुत उपयोगी हैं।
    2. इसका इस्तेमाल आयुर्वेद में विषाक्त पदार्थों को खत्म करने और उत्तकों को पोषण देने के लिए किया जाता है यह विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है।
    3. इसमें क्रोमियम, कैलशियम, फास्फोरस और आयरन पर्याप्त मात्रा में होते हैं जो शरीर में इंसुलिन को अवशोषित करने और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
    4. आंवला बहुत उर्जादायक जड़ी-बूटी है और तीनों दोषों को साफ करती है। बस पित्त दोष वाले व्यक्ति को आंवले के कुछ हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।

     

    करावेल्ल्का

    1. यह एक रक्तशोधक जड़ी बूटी है। इसलिए मधुमेह के इलाज के लिए इसे बेहतर समझा जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी होता है और इसमें वजन घटाने की क्षमता भी होती है।
    2. हर डायबिटीज के रोगी पर यह जड़ी-बूटी अलग-अलग तरह से असरदार होती है। इसलिए किसी अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में ही इसका इस्तेमाल करें।

     

    मेथी

    1. प्राचीन समय से इस ऊर्जादायक जड़ी-बूटी को मधुमेह के उपचार के लिए बहुत कारगर माना जाता है।
    2. मधुमेह रोगी की चिकित्सकीय स्थिति के आधार पर इस जड़ी-बूटी की सलाह दी जाती है।
    3. मेथी के बीजों को अंकुरित करके सुबह नाश्ते मे खाएं।
    4. मेथी के बीजों को रातभर पानी में भिगोए और उस पानी को सुबह खाली पेट पिएं। बीजों को चबा-चबा कर खाएं।

     

    दालचीनी

    1. दालचीनी एक ऐसी प्राकृतिक जड़ी बूटी है जो मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
    2. यह ब्लड प्रेशर को कम करने और डायबिटीज से लड़ने में मददगार होती है।
    3. यह भोजन के बाद ब्लड शुगर में कमी और आपकी इंसुलिन संवेदनशीलता को भी बढ़ाती है।
    4. यह एक कार्डियो टॉनिक भी है जो हाई बीपी के रोगियों और डायबिटीज के उपचार में मददगार है।

     

    त्रिफला चूर्ण

    1. यह एक ऐसा मिश्रण है जो एक इम्यूनिटी बूस्टर है और साथ ही साथ पाचन के लिए भी बहुत अच्छा है।
    2. इसमें पाए जाने वाले तत्व ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मददगार हैं।
    3. त्रिफला चूर्ण एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जिस कारण यह शरीर के ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को भी कम करने में मदद करता है।

     

    अंजीर के पत्ते

    1. अंजीर में मधुमेह विरोधी गुण होते हैं जिस कारण डायबिटीज के इलाज में इसके पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है।
    2. अंजीर के पत्तों को खाली पेट चबाने या पानी में उबालकर पीने से डायबिटीज को नियंत्रित रखा जा सकता है।

     

    जामुन के बीज

    1. डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए जामुन के बीजों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
    2. इसकी गुठलियों को अच्छी तरह सुखाकर पीस लें और इस चूर्ण को सुबह खाली पेट गुनगुने पानी से लेने से डायबिटीज नियंत्रित रहता है।

     

    सहिजन के पत्ते

    1. सहिजन के पत्ते भी डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद है।
    2. इन पत्तों के सेवन से रोगियों में भोजन का पाचन बेहतर होता है और हाई बीपी को कम करने में भी मदद मिलती हैं।

     

    नीम

    1. नीम के पत्ते और उसके जूस का सेवन रोजाना सुबह खाली पेट करने से डायबिटीज नियंत्रित रहता है।
    2. इसके पत्तों में इंसुलिन रिसेप्टल सेंसटिविटी बढ़ाने के साथ-साथ शिराओं और धमनियों में रक्त प्रवाह को सुचारू रूप से चलाने का गुण है।
    3. इसके नियमित सेवन से शुगर कम करने वाली दवाइयों पर निर्भर होने से भी बचा जा सकता है।

     

    मधुमेह में सहायक आयुर्वेदिक औषधियां

     

    1. निशा-आमलकी - यह औषधि आंवले के रस और हल्दी पाउडर को मिलाकर तैयार की गई है जिसकी सलाह आयुर्वेद में डायबिटीज के इलाज के लिए दी जाती है। इससे डायबिटीज में होने वाली अन्य समस्याएं जैसे कि डायबिटीज न्यूरोपैथी, नेफ्रोपैथी, रेटिनोपैथी, गैस्ट्रोपैथी और एथेरोस्क्लेरोसिस को रोकने एवं नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

     

    मधुमेह के लक्षण

     

    1. फलत्रिकादी क्वाथ - इस काढ़े को बराबर मात्रा में आमलकी, हरीतकी और विभीतकी के साथ दारूहरिद्र के तने, इंद्रायण की जड़ और नागरमोथा से तैयार किया गया है। यह भोजन के पाचन और भोज्य पदार्थों को तोड़कर उनके उचित अवशोषण में सुधार कर हर तरह के डायबिटीज के इलाज में उपयोगी है। यह औषधि ना पचने वाले भोजन और तत्वों को भी शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है।

     

    1. निशा कतकादिकषाय - यह औषधि 12 जड़ी बूटियों जैसे कि कटक, खदिरा, आमलकी, वैरी, दारूहरिद्र, समंग, विदुला, हरिद्रा, पधि, आम के बीज, हरितकी और नागरमोथा से मिलकर बनी है। यह कषाय थकान, हाथ और पैरों में जलन, अत्यधिक प्यास लगना और बार-बार पेशाब आने जैसे डायबिटीज के लक्षणों से राहत दिलाता है। कुल मिलाकर यह जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है और डायबिटीज मेलिटस को नियंत्रित करने में सहायक है। इसे अकेले या यशद भस्म के साथ इस्तेमाल किया जाता है।

     

    1. कतकखदिरादि कषाय - यह एक हर्बल काढ़ा है जिसमें एक बराबर मात्रा में कटक, खदिरा, आमलकी, दारूहरिद्र, हरिद्रा, अभय और आम के बीच आदि जैसी जड़ी बूटियां मौजूद है। इस कषाय में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो वात और पित्त दोनों ही दोषों से संबंधित रोगों को नियंत्रित करता है। यह मधुमेह और डायबिटिक न्यूरोपैथी के उपचार में लाभकारी है।

     

    मधुमेह की आयुर्वेदिक औषधियों से जुड़े सुझाव

    मधुमेह के उपचार में आमलकी, करावेल्लका, गुडूची और मेथी बेहद कारगर है। आमलकी का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए और गर्भवती महिलाओं को मेथी के सेवन से बचना चाहिए। ऊपर बताई गई डायबिटीज की दवाओं में सामग्री के रूप में भी आमलकी मौजूद है। हालांकि यह सभी दवाएं मधुमेह के उपचार में प्रभावी है लेकिन इनका सेवन चिकित्सक की सलाह से ही किया जाना चाहिए।

     

    मधुमेह

    मधुमेह चयापचय प्रणाली से जुड़ा रोग है जिस पर नियंत्रण पाने और इससे होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए प्रभावी उपचार और जीवन शैली में बदलाव किए जाने की जरूरत है। आयुर्वेद मधुमेह की वजह बनने वाले सभी कारकों को नियंत्रित करने के साथ-साथ इसमें होने वाली जटिलताओं को रोकने पर ध्यान केंद्रित करता है। मधुमेह के आयुर्वेदिक उपचार में दिनचर्या में साधारण से और असरदार बदलाव के साथ जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे डायबिटीज के लक्षणों को खत्म किया जा सके।

     

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    Author

    Ridhima Arora

    Ridhima Arora is an Indian entrepreneur, author, trained yoga instructor, and practicing nutritionist. She is the founder of Namhya Foods.Besides being the founder of Namhya foods, Ridhima also gives nutrition coaching in seminars to kids, NGOs, and corporates. She also works as a freelancer at Global Changemakers.